शब-ए-बारात पर मस्जिदों में हुई इबादत
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रामनगर,रागिब खान। मुस्लिम धर्म मे अपने गुनाहो की मॉफी मॉगने की रात के त्यौहार का नाम शब-ए-बरात हैं। माना जाता है,कि इस रात अल्लाह अपने बंदो को मॉफी देने का काम करता है। इसलिये मुस्लिम भाई पूरी रात जगकर सुबह सूर्योदय मे फर्ज की नमाज होने तक अपने खुदा की इबादत करके अपने खुदा से अपने गुनाहो की मॉफी मॉगते है, ओर शब ऐ रात के अगले दिन रोजा रखते है। जिसका सबाब अन्य दिन के रोजे की अपेक्षा कही अधिक गुना मिलता है। माना यह भी जाता है, कि अल्लाह के यहॉ शब- ए- बरात की रात ही पूरे साल मे इस दुनियॉ मे आने वाले व इस दुनियॉ से जाने वाले इंसानो का लेखा- जोखा भी तैयार होता है। इस पर्व के मौके पर सूजी के हलुवे पर न्याज लगाकर उसे गरीबो व अपने रिश्तेदारो मे बॉटा जाता है,तथा पूरी रात खासतौर पर पढ़ी जाने वाली विशेष नमाज नफीले पढ़ी जाती है। साथ ही कब्रिस्तानो को सजाया सवांरा जाता है। तथा मुस्लिम भाई रात्रि मे कब्रिस्तानो मे जाकर इस दुनियॉ से रूखसत हो चुके अपने अजीजो की मगफिरत यानि मोझ के लिये फातहा पढ़ते है, ओर दुआये मॉगते है। शबे रात पर नमाज के लिए शहर की जामा मस्जिद सहित क्षेत्र की सभी मस्जिदो मे विशेष व्यवस्था की जाती है। मुस्लिम भाई इस मौके पर अपनी-अपनी नेक कमाई से मस्जिदो व कब्रिस्तानो के आस- पास जगह-जगह चाय,शर्बत की सबीले बॉटने का काम करते है। शहर पेश इमाम मुफ्ती गुलाम मुस्तफा नईमी बताते है कि शब-ए-बरात माह रमजान से 15 दिन पहले होती है। इस रात परवरदिगार के द्वारा अपने अनुनाईयो को अपने गुनाहो से माफी मॉगने का पूरा मौका दिया जाता है, और रहमत व जन्नत के दरवाजे खोल दिये जाते है, और लोग पूरी रात इबादत करते हैै। उनके अनुसार यह रहमतो से भरी रात है, तथा परवरदिगार की रहमते और बरकते इस रात मे बारिश की बूंदो की तरह बरसती है। इमाम मुफ्ती गुलाम मुस्तफा नईमी के अनुसार इस रात वैसे तो सभी को अपने गुनाहो से मॉफी मिल जाती है,मगर माता-पिता की नाफरमानी करने वाले, शराब पीने वाले और नाते-रिश्ते तोड़ने वाले लोगो को मॉफी नही मिलती है। उनके अनुसार इस रात मे आतिशबाजी व अन्य फिजूल और गुनाह के कामो से बचना चाहिये तथा ज्यादा से ज्यादा खुदा की इबादत करके अपने-अपने गुनाहो की मॉफी मॉगनी चाहियें।
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